नीति आयोग की पृष्ठभूमि
- 1947 ईस्वी में औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भारत के सामने एक गंभीर चुनौती यह थी कि वह भारत के विकास को सुनिश्चित करने के लिए किस प्रकार की शासन व्यवस्था को अपनाए। ऐसी स्थिति में, भारत ने विशुद्ध समाजवादी प्रारूप को अपनाना भी अनुचित माना था और पूर्ण रूप से पूंजीवादी शासन के स्वरूप को भी उचित नहीं माना था। इसलिए भारत ने अपनी आवश्यकता के अनुसार शासन व्यवस्था के मिश्रित प्रारूप का चयन करना उचित समझा था। लेकिन भारत द्वारा अपनाए गए शासन व्यवस्था के इस मिश्रित स्वरूप में भी भारत का अधिक झुकाव पूंजीवाद की तरफ न होकर, समाजवाद की तरफ ही रहा था।
- इस दौरान भारत ने अपना समाजवादी झुकाव तत्कालीन सोवियत संघ की ओर रखा था और भारत ने तत्कालीन सोवियत संघ की शासन व्यवस्था के आधार पर ही पंच वर्षीय योजनाओं के प्रारूप को अपनाया था और इसी के आधार पर देश के विकास का सपना देखा था। तत्कालीन भारत सरकार ने भारत के विकास से संबंधित इस सपने को पूरा पूरा करने के लिए एक कार्यकारी संस्था का गठन किया था और इस संस्था का नाम रखा गया था- ‘योजना आयोग’ (Planning Commission)। योजना आयोग का गठन 15 मार्च, 1950 को भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में तत्कालीन भारत सरकार ने एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से किया था। इस प्रकार, योजना आयोग एक कार्यकारी संस्था थी।
- योजना आयोग को देश के विकास से संबंधित पंचवर्षीय योजनाओं के निर्माण का मुख्य कार्य दिया गया था। इसके अलावा, योजना आयोग सरकार से इस बात की भी सिफारिश करता था कि केंद्र द्वारा राज्यों को उन पंचवर्षीय योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए कितनी वित्तीय सहायता दी जानी चाहिए। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि योजना आयोग देश के विकास को सुनिश्चित करने वाली एक महत्वपूर्ण संस्था थी। लेकिन हाल के वर्षों में योजना आयोग की महत्ता धीरे-धीरे कम होती जा रही थी क्योंकि देश की जरूरतें समय के साथ साथ परिवर्तित हो रही थीं। इसीलिए वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गठित हुई एन. डी. ए. सरकार द्वारा 1 जनवरी 2015 को एक नए कार्यकारी आदेश के माध्यम से पहले से उपस्थित योजना आयोग को तो समाप्त कर दिया गया था और उसके स्थान पर नीति आयोग का गठन किया गया था।
नीति आयोग का परिचय
- नीति आयोग का पूरा नाम ‘राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान’ (National Institute for Transforming India – NITI) आयोग है। 1 जनवरी, 2015 को भारत सरकार द्वारा एक कार्यकारी आदेश पारित किया गया था, जिसके माध्यम से योजना आयोग को समाप्त कर दिया गया था और नीति आयोग की स्थापना कर दी गई थी। भारत सरकार द्वारा योजना आयोग को समाप्त करके नीति आयोग का गठन करने से पहले अनेक विशेषज्ञों, समस्त राज्य सरकारों, अनेक महत्वपूर्ण संस्थानों अन्य हित धारकों के साथ से व्यापक विचार विमर्श किया गया था और उसके बाद नीति आयोग को गठित करने का फैसला लिया गया था। वर्ष 2015 में गठित किए गए नीति आयोग को मुख्य रूप से देश में सहकारी संघवाद के ढांचे को और अधिक मजबूत करने का कार्य सौंपा गया था।
- इसके साथ साथ नीति आयोग को मुख्यतः इस उद्देश्य के साथ भी गठित किया गया था कि वह देश में ‘न्यूनतम सरकार के माध्यम से अधिकतम शासन’ को सुनिश्चित करने में सक्षम होगा। प्रचलित रूप में इस व्यवस्था को ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन के सिद्धांत’ (Principle of Minimum Government, Maximum Governance) के नाम से भी जाना जाता है।
- वास्तव में, नीति आयोग भारत सरकार का एक ऐसा थिंक टैंक है, जो भारत सरकार को विभिन्न विकासात्मक मसलों पर सलाह देता है। यह कार्यकारिणी संस्थान भारत सरकार को अनेक बिंदुओं पर तकनीकी परामर्श भी उपलब्ध कराता है। नीति आयोग भारतीय अर्थव्यवस्था के उत्थान से संबंधित न सिर्फ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बिंदुओं पर सलाह देता है, बल्कि यह विश्व के अन्य देशों में प्रचलित बेहतरीन प्रणालियों को भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप अपनाने के लिए भी सरकार को परामर्श देता है।
नीति आयोग के मुख्य उद्देश्य
- नीति आयोग के घोषित किए गए उद्देश्यों में भारत के कृषि क्षेत्र का उत्थान करना शामिल है। कृषि क्षेत्र में नीति आयोग का मुख्य उद्देश्य यह है कि भारत को खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में तो आत्म निर्भर बनाना ही है, इसके साथ साथ कृषि उत्पादन को भी उस स्तर तक अधिक बढ़ाना है कि भारत के किसान उसका निर्यात करने के लिए भी प्रेरित हो सकें। इसके अलावा, किसानों को ना सिर्फ अपनी उपज बेचने के लिए आसानी से बाजार उपलब्ध हो सके, बल्कि उसे बाजार में अपनी उपज का उचित मूल्य भी प्राप्त हो सके। नीति आयोग भारत के कृषि क्षेत्र को सकारात्मक रूप से परिवर्तित करने के लिए संकल्पित है।
- नीति आयोग का एक उद्देश्य यह भी है कि वैश्विक स्तर पर भारत से संबंधित ऐसे मुद्दों को प्राथमिकता से उठाया जाए, जिन पर अभी तक अत्यंत कम ध्यान दिया गया है, लेकिन वे भारत के हित के दृष्टिकोण से बहुत अधिक महत्व रखते हैं। नीति आयोग ऐसे मुद्दों को वैश्विक स्तर पर विभिन्न मंचों से उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा तथा उनसे संबंधित बहस और विचार विमर्श इत्यादि में भागीदारी करेगा, ताकि वैश्विक स्तर पर भारत के हितों को पूरा किया जा सके।
- नीति आयोग के उद्देश्यों की सूची में इस बात को भी शामिल किया गया है कि शासन में निहित जटिलताओं को निरंतर कम किया जाए तथा उस के माध्यम से लोगों को होने वाली परेशानियों को न्यूनतम किया जाए। शासन की जटिलताओं को कम करने और लोगों की परेशानियों को न्यूनतम करने के लिए इसमें अधिक से अधिक से अधिक प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल को भी बढ़ावा दिया जाए, ताकि सरकार की नीतियों की आम लोगों तक आसानी से और प्रभावी ढंग से पहुँच सुनिश्चित की जा सके।
- चूँकि भारत में एक विशाल आबादी निवास करती है, इसीलिए इसके संबंध में विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में उद्यमशीलता, वैज्ञानिक विकास के दृष्टिकोण इत्यादि की अपार संभावनाएँ मौजूद हैं। इसके अलावा, भारत में बौद्धिक मानव पूंजी का भंडार भी पर्याप्त मात्रा में उपस्थित है। ऐसी स्थिति में, भारत में निहित तमाम संभावनाओं को उपयोग भारत के आर्थिक विकास के लिए तथा भारत के समक्ष उपस्थित विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए किया जाना चाहिए। इस बिंदु को भी नीति आयोग के मुख्य उद्देश्यों के अंतर्गत शामिल किया गया है।
- भारत के नागरिकों का एक बड़ा हिस्सा विश्व के विभिन्न देशों में निवास करता है। विश्व के विभिन्न देशों में निवास करने वाले भारतीय नागरिकों के इस समुदाय को ‘प्रवासी भारतीय समुदाय’ के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा, भारतीय मूल के भी अनेक लोग विश्व के विभिन्न देशों में निवास कर रहे हैं। तो ऐसे में, नीति आयोग का एक मुख्य उद्देश्य यह भी घोषित किया गया है कि वह विदेशों में निवास कर रहे इन भारतीय समुदायों का उपयोग भारत के आर्थिक हितों को पूरा करने के लिए करे। इसके अलावा, वह भू राजनीतिक दृष्टिकोण से भी विश्व के विभिन्न देशों में रह रहे इस भारतीय समुदाय का उपयोग भारत के हित पूरे करने के लिए करे।
- नीति आयोग का एक यह उद्देश्य भी घोषित किया गया है कि वह सरकार और प्रशासन के स्वरूप को इस प्रकार से परिवर्तित करने से संबंधित परामर्श दे सके, ताकि सरकार भारत के समस्त लोगों को स्वावलंबी और सक्षम बनाने में सफल हो सके। इसका सामान्य अर्थ यह है कि सरकार को एक ऐसी संस्था के रूप में परिवर्तित कर दिया जाए कि वह लोगों को सक्षम बनाने वाला एक महत्वपूर्ण उपकरण सिद्ध हो सके। योजना आयोग के दौर में भारत में इस प्रकार की व्यवस्था प्रचलित थी कि लोग ‘सरकार को अपना पहला और आखरी सहारा’ मानते थे, लेकिन नीति आयोग को इस परिपाटी को परिवर्तित करने का उद्देश्य सौंपा गया है, ताकि इस प्रक्रिया के माध्यम से ना सिर्फ लोगों को स्वावलंबी और सक्षम बनाया जा सके, बल्कि सरकारी संसाधनों के अनावश्यक अपव्यय को भी रोका जा सके।
- यह एक स्थापित तथ्य है कि भारत का मध्य वर्ग भारत के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसी स्थिति के मद्देनजर विभिन्न उद्देश्यों में नीति आयोग का एक यह उद्देश्य भी निर्धारित किया गया है कि वह सरकार को नीतियों से संबंधित इस प्रकार के परामर्श दे, ताकि भारत के मध्य वर्ग के सामर्थ्य का अधिकाधिक दोहन किया जा सुनिश्चित किया जा सके और उस के माध्यम से भारत के आर्थिक विकास की गति तेज की जा सके। इसका अर्थ है कि नीति आयोग का यह उद्देश्य निर्धारित किया गया है कि वह भारत के मध्य वर्ग के सामर्थ्य का इस प्रकार से उपयोग कर सके, ताकि भारत के आर्थिक विकास को तीव्र गति प्रदान की जा सके।
- इसके अलावा, नीति आयोग का एक उद्देश्य यह भी निर्धारित किया गया है कि वह सरकार को इस प्रकार का परामर्श दे ताकि देश में सभी लोगों के लिए सुरक्षित आवास की व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके। इसके साथ ही नीति आयोग के उद्देश्यों में इस बात को भी शामिल किया गया है कि वह सरकार को इस प्रकार की नीतिगत सलाह प्रदान करे, जिससे कि देश के शहरीकरण को बढ़ावा दिया जा सके तथा शहरीकरण को बढ़ावा देने के लिए आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सके। ताकि अंततः भारत के शहर सतत् विकास की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें।
नीति आयोग की संरचना
- नीति आयोग के अध्यक्ष (Chairperson)- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Chairperson of NITI Aayog – Prime Minister Narendra Modi)
- नीति आयोग के उपाध्यक्ष (Vice-Chairperson)- सुमन के बेरी (Vice-Chairperson of NITI Aayog – Suman K Berry)
- नीति आयोग के सीईओ (Chief Executive Officer) – बीवीआर सुब्रमण्यम ( Niti Aayog CEO- BVR Subrahmanyam)
- नीति आयोग के पूर्व आधिकारिक सदस्य – अधिकतम 4
- नीति आयोग के अंशकालिक सदस्य – अधिकतम 2
इसके अलावा शासी परिषद जिसमें सभी मुख्यमंत्री और केंद्र शासित प्रदेशों के विधानमंडल शामिल हैं और शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अन्य विभागों से संबंधित विभिन्न विभागों के विशेषज्ञ सदस्य भी निति आयोग में शामिल हैं।
- नीति आयोग की संरचना की बात करें, तो इसमें कुछ सदस्य पूर्णकालिक होते हैं तो कुछ अंशकालिक सदस्य होते हैं। इसके अलावा, इसमें राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व भी सुनिश्चित किया गया है। नीति आयोग में राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधियों को इसलिए स्थान दिया गया है ताकि इस संस्थान के माध्यम से उन कमियों को दूर किया जा सके, जो इसके पूर्ववर्ती संस्थान योजना आयोग में नहीं थीं। नीति आयोग में कुछ ऐसे पदेन सदस्य भी शामिल किये गए हैं, जो किसी अन्य पद पर होने के कारण अपने आप ही नीति आयोग का हिस्सा भी बन जाते हैं।
- सबसे पहले तो नीति आयोग की अध्यक्षता भारत के प्रधान मंत्री द्वारा की जाती है। यानी भारत के प्रधान मंत्री नीति आयोग के पदेन अध्यक्ष होते हैं। इसका अर्थ यह है कि जो भी व्यक्ति भारत का प्रधान मंत्री होगा, वह अपने आप ही नीति आयोग का अध्यक्ष भी बन जाएगा। भारत का प्रधान मंत्री नीति आयोग का अंशकालिक हिस्सा नहीं, बल्कि पूर्णकालिक हिस्सा होता है। इसका अर्थ यह है कि ऐसा नहीं है कि भारत के प्रधान मंत्री को नीति आयोग की बैठकों में किसी विशेष अवसर पर ही बुलाया जाता है, बल्कि जब कभी भी नीति आयोग की बैठक होती है, तो उसकी अध्यक्षता भारत के प्रधान मंत्री द्वारा ही की जाती है।
- भारत के प्रधान मंत्री के अलावा, नीति आयोग में एक उपाध्यक्ष भी होता है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष की नियुक्ति भारत के प्रधान मंत्री के द्वारा ही की जाती है। नीति आयोग का उपाध्यक्ष नीति आयोग का एक पूर्णकालिक हिस्सा होता है, अर्थात् नीति आयोग के अध्यक्ष की तरह ही इसका उपाध्यक्ष भी नीति आयोग की किसी विशेष बैठकों के अवसर पर ही नहीं बुलाया जाता है, बल्कि वह नीति आयोग की हर एक बैठक में उपस्थित होता है। सामान्यतः एक ऐसा व्यक्ति, जो प्रधान मंत्री का विश्वासपात्र होता है, प्रधान मंत्री उसे नीति आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्त करते हैं।
- नीति आयोग में एक ‘मुख्य कार्यकारी अधिकारी’ (CEO) भी होता है। यह मुख्य कार्यकारी अधिकारी भारत सरकार के सचिव स्तर का अधिकारी होता है। इसका एक निश्चित कार्यकाल होता है और इसकी नियुक्ति भी भारत के प्रधान मंत्री द्वारा ही की जाती है। नीति आयोग का यह मुख्य कार्यकारी अधिकारी नीति आयोग के कार्य निष्पादन और नीतिगत फैसले लेने में बहुत अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- इसके अलावा, भारत के प्रधान मंत्री कुछ ऐसे लोगों को भी नीति आयोग के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में नियुक्त करते हैं, जो अपने अपने क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखते हैं। वे लोग आर्थिक क्षेत्र में, अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में या अन्य किसी क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले हो सकते हैं। प्रधान मंत्री द्वारा पूर्णकालिक सदस्य के रूप में नियुक्त किए जाने वाले ये विशेषज्ञ लोग, देश के समक्ष उपस्थित समस्याओं का समाधान करने से संबंधित नीतियों के निर्माण में सरकार की मदद करते हैं। इन विशेषज्ञ सदस्यों को नीति आयोग की बैठक में विशेष आमंत्रण के साथ बुलाया जाता है। इसका अर्थ यह है कि ये विशेषज्ञ लोग नीति आयोग की हर एक बैठक में हिस्सा नहीं लेते हैं, बल्कि जब कभी भी नीति आयोग को किसी विशेषज्ञता पूर्ण परामर्श की आवश्यकता होती है, तो इन विशेषज्ञ सदस्यों को नीति आयोग की बैठकों में हिस्सा लेने के लिए बुलाया जाता है।
- भारत के प्रधान मंत्री केंद्रीय मंत्री परिषद के अधिकतम चार मंत्रियों को भी नीति आयोग के पदेन सदस्य के रूप में नियुक्त करते हैं। इसका अर्थ यह है कि कौन कौन से मंत्रालय के मंत्री नीति आयोग के पदेन सदस्य होंगे, इस बात का निर्णय करना प्रधान मंत्री के विवेक पर निर्भर करता है। ये मंत्री, मंत्री के रूप में अपना पद धारण करने तक नीति आयोग के सदस्य बने रहते हैं। इसके अलावा, यदि भारत के प्रधान मंत्री चाहें, तो मंत्री परिषद के पदेन अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किए गए इन चार मंत्रियों के अतिरिक्त, किसी अन्य मंत्री या किन्हीं अन्य मंत्रियों को भी विशेष आमंत्रण के साथ नीति आयोग की बैठकों में हिस्सा लेने के लिए बुलाया जा सकता है।
- इसके अलावा, नीति आयोग की संरचना के अंतर्गत एक ‘शासी परिषद’ (Governing Council) के गठन का प्रावधान भी किया गया है। शासी परिषद नीति आयोग की एक प्रमुख इकाई होती है। नीति आयोग की इस शासी परिषद में देश के सभी राज्यों के मुख्य मंत्री और देश के सभी केंद्र शासित प्रदेशों के उप राज्यपाल शामिल होते हैं। इसकी बैठक के दौरान समस्त राज्यों के मुख्य मंत्री और समस्त केंद्र शासित प्रदेशों के उप राज्यपाल अपने अपने प्रदेशों से संबंधित समस्याएँ नीति आयोग के समक्ष रखते हैं। इस व्यवस्था का उद्देश्य यह होता है कि केंद्र सरकार द्वारा राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के संबंध में नीतियाँ बनाते समय उनकी चिंताओं का ध्यान भी रखा जा सके और उनकी समस्याओं का समाधान करने से संबंधित नीतियाँ बनाई जा सकें।
- भारत के प्रधान मंत्री नीति आयोग में अंशकालिक सदस्यों की नियुक्ति भी कर सकते हैं। वास्तव में, देश के ऐसे अग्रणी विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों तथा अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों से संबंधित अधिकतम 2 सदस्यों को भारत के प्रधान मंत्री द्वारा नीति आयोग के अंशकालिक सदस्य के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।
- इसके अलावा, जब कभी भी किसी आकस्मिक मामले या किसी विशिष्ट मुद्दे के संबंध में कोई समस्या खड़ी होती है, तो उसके समाधान के लिए क्षेत्रीय परिषद के गठन का प्रावधान भी किया गया है। क्षेत्रीय परिषद की बैठकों में संबंधित राज्य अथवा राज्यों के मुख्य मंत्री और संबंधित केंद्र शासित प्रदेश अथवा केंद्र शासित प्रदेशों के उप राज्यपाल हिस्सा लेते हैं। क्षेत्रीय परिषद की बैठक भारत के प्रधान मंत्री के निर्देश पर आयोजित की जाती है। इन बैठकों का एक विशिष्ट कार्यकाल होता है तथा क्षेत्रीय परिषदों की अध्यक्षता नीति आयोग के उपाध्यक्ष के द्वारा की जाती है। इसका अर्थ यह है कि किसी विशिष्ट मुद्दे अथवा किसी आकस्मिक समस्या का समाधान करने के पश्चात् इन क्षेत्रीय परिषदों का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है। इसका आशय है कि क्षेत्रीय परिषद कोई पूर्णकालिक संस्था नहीं होती है, बल्कि किसी समस्या विशेष के समाधान के लिए गठित किया जाने वाला निकाय है और इसकी अध्यक्षता नीति आयोग के उपाध्यक्ष के द्वारा की जाती है|
- नीति आयोग के 7 स्तंभ (7 Pillars of NITI Aayog)
- प्रो-पीपल (Pro-People):
- नीति आयोग जन-समर्थक है क्योंकि यह समाज और व्यक्तियों दोनों की आकांक्षाओं को पूरा करता है।
- प्रो-एक्टिव (Pro-Active):
- नीति आयोग नागरिकों की जरूरतों का अनुमान लगाने और प्रतिक्रिया देने पर केंद्रित है।
- भागीदारी (Participation):
- नीति आयोग की भागीदारी में आम जनता की भागीदारी शामिल है।
- सशक्तिकरण (Empowering):
- लोगों को विशेष रूप से महिलाओं को उनके जीवन के सभी पहलुओं में सशक्त बनाना।
- सभी का समावेश (Inclusion of All) :
- नीति आयोग जाति, पंथ या लिंग की परवाह किए बिना सभी लोगों को योजनाओं के लाभ में शामिल करना सुनिश्चित करता है।
नीति आयोग का मूल दर्शन : सहकारी संघवाद
- नीति आयोग को प्रदान किए गए विभिन्न अधिदेशों में से ‘सहकारी संघवाद’ (Cooperative Federalism) को बढ़ावा देना भी एक महत्वपूर्ण अधिदेश (Mandate) है। सहकारी संघवाद का मौलिक अर्थ यह है कि भारत में संघवाद की भावना को सहकारी माध्यम से बढ़ावा दिया जाए। सरल शब्दों में कहा जाए, तो इस व्यवस्था के तहत भारतीय संघवाद को मजबूत करने के लिए केंद्र और विभिन्न राज्य आपस में मिलकर कार्य करेंगे।
- योजना आयोग के अस्तित्व के दौरान भारत में विकास संबंधित नीतियाँ केंद्र के द्वारा बनाई जाती थी और उनका क्रियान्वयन राज्यों के सहयोग से किया जाता था। इसका अर्थ है की नीतियाँ बनाते समय राज्यों की प्रभावी भूमिका नहीं होती थी। ऐसे में, केंद्र द्वारा निर्मित नीतियों में सभी राज्यों की समस्याओं के समाधान का दृष्टिकोण शामिल नहीं हो पाता था। लेकिन इस समस्या का समाधान करने के लिए योजना आयोग को समाप्त करके नीति आयोग का गठन किया गया है तथा इस संस्था में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की भागीदारी भी सुनिश्चित की गई है। केंद्र के साथ साथ राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की भागीदारी सुनिश्चित करने से संबंधित इस व्यवस्था को ही सहकारी संघवाद का नाम दिया गया है।
- सहकारी संघवाद के सिद्धांत को इस रूप में भी समझा जा सकता है कि इस व्यवस्था के तहत राष्ट्रीय विकास की योजनाएँ निर्मित करते समय तथा उससे संबंधित रणनीतियाँ बनाते समय, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की ‘अग्रसक्रिय भागीदारी’ (Proactive Partnership) को सुनिश्चित किया जाता है। इस सिद्धांत के अंतर्गत न सिर्फ केंद्र और राज्य के आपसी संबंधों को, बल्कि राज्यों और राज्यों के आपसी संबंधों को भी मजबूत करने की ओर बल दिया जाता है। सबसे बढ़कर, सहकारी संघवाद के सिद्धांत का मौलिक दर्शन यह होता है कि सशक्त राज्यों के निर्माण के द्वारा ही एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण संभव किया जा सकता है।
- समय के साथ साथ अब सहकारी संघवाद की व्यवस्था अपने अगले चरण में पहुँचने लगी है। इसके अंतर्गत अब सहकारी संघवाद के साथ ही ‘प्रतिस्पर्धी संघवाद’ (Competitive Federalism) की बात की जाने लगी है। प्रतिस्पर्धी संघवाद, सहकारी संघवाद से इस अर्थ में अलग होता है कि ‘सहकारी संघवाद’ के तहत राज्यों और राज्यों तथा केंद्र और राज्यों के बीच आपसी सहयोग के माध्यम से आगे बढ़ने की बात की जाती है। जबकि ‘प्रतिस्पर्धी संघवाद’ के अंतर्गत विभिन्न राज्यों के मध्य एक प्रकार की सकारात्मक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया जाता है, ताकि विभिन्न राज्य एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ लगा सकें। ऐसी स्थिति में, जब विभिन्न राज्यों के मध्य एक दूसरे से आगे बढ़ने की प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया जाता है, तो इससे न सिर्फ राज्यों का विकास तेज गति से होता है, बल्कि राष्ट्रीय विकास की गति भी तीव्र हो जाती है।
क्यों अप्रासंगिक हो गया था योजना आयोग?
- वास्तव में, समय के साथ साथ देश की विकास से संबंधित आवश्यकताएँ परिवर्तित हो रही थीं। ऐसे में, देश के विकास के लिए बनने वाली नीतियों में भी परिवर्तन की आवश्यकता थी। योजना आयोग के दौर में देश के विकास संबंधी नीतियाँ मुख्यतः केंद्र के माध्यम से ही संचालित होती थीं। उन नीतियों के निर्माण में राज्यों की पर्याप्त सहभागिता नहीं होती थी, लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अगर देखा जाए, तो देश की विकास यात्रा में केंद्र के साथ राज्यों का सहयोग भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसे में, योजना आयोग के स्थान पर किसी ऐसे निकाय को गठित करने की आवश्यकता थी, जो इन अपेक्षाओं पर खरा उतर सके। इसीलिए योजना आयोग के स्थान पर ‘नीति आयोग’ का गठन करने का निर्णय मोदी सरकार द्वारा लिया गया था।
- योजना आयोग द्वारा निर्मित की जाने वाली आर्थिक नियोजन की नीतियाँ अपने स्वरूप में एकरूपता रखती थीं। ऐसी स्थिति में, राज्यों की विकास से संबंधित आवश्यकताओं की अनदेखी हो जाती थी। चूँकि भारत एक विविधता से परिपूर्ण देश है, ऐसी स्थिति में, प्रत्येक राज्य की विकास से संबंधित आवश्यकताएँ अलग होती हैं। इसके अलावा, भारत में विभिन्न भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियाँ भी पाई जाती हैं। इन विविधता पूर्ण भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के अनुरूप प्रत्येक राज्य को अपनी परिस्थिति के अनुसार अलग अलग प्रकार की विकास संबंधी नीतियों और संसाधनों की आवश्यकता होती है। इन तमाम कारकों की अनदेखी योजना आयोग द्वारा की जा रही थी। ऐसी स्थिति में, यह आवश्यक हो गया था कि देश के विकास के लिए बनने वाली इन नीतियों में एकरूपता को समाप्त करके देश के विकास का ऐसा दृष्टिकोण अपनाया जाए, जो न सिर्फ प्रत्येक राज्य का विकास करने में सहायक हो सके बल्कि समेकित के रूप से संपूर्ण देश का विकास करने में भी सहायक हो सके।
- इसके अलावा, राज्यों के बीच आपस में विकास संबंधी सकारात्मक प्रतिस्पर्धा की भी कमी थी और इससे राज्य अपना विकास करने के लिए प्रेरित नहीं हो रहे थे। ऐसी परिस्थिति में, एक ऐसे निकाय की आवश्यकता थी, जो राज्यों के बीच विकास को बढ़ावा देने के लिए एक सकारात्मक प्रतिस्पर्धा को जन्म दे सके और उन्हें अपना विकास करने के लिए प्रेरित कर सके। योजना आयोग यह कार्य करने में सफल नहीं हो पा रहा था, इसलिए इस दृष्टिकोण से योजना आयोग अप्रासंगिक हो गया था। इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि देश में विकास संबंधी सकारात्मक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए भी योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग का गठन किया जाना आवश्यक हो गया था।
योजना आयोग से कैसे भिन्न है नीति आयोग?
- हालाँकि नीति आयोग और योजना आयोग, दोनों ही इस अर्थ में समान हैं कि इन दोनों ही स्थापना भारत की राजव्यवस्था के अंतर्गत कार्यकारी निकाय के रूप में की गई। लेकिन इसके बावजूद, दोनों संस्थाओं के मध्य पर्याप्त भिन्नताएँ मौजूद हैं।
- नीति आयोग को एक नीतिगत थिंक टैंक के रूप में ही स्थापित किया गया है। इसका उद्देश्य सरकार को सिर्फ परामर्श देना भर है। इसके अलावा, यह सरकार की किसी योजना को क्रियान्वित करने के लिए उत्तरदायी नहीं होता है। इसके विपरीत, योजना आयोग अन्य दो प्रकार के कार्य भी करता था। इनमें पहला कार्य था- केंद्र सरकार की तरफ से राज्यों को वित्त का हस्तांतरण करना और दूसरा कार्य था- पंच वर्षीय योजनाओं का निर्माण करना। योजना आयोग को समाप्त करके गठित किए गए नीति आयोग को इन दोनों कार्यों से मुक्त कर दिया गया है। सबसे बढ़कर तो नीति आयोग की स्थापना के बाद पंच वर्षीय योजनाओं की व्यवस्था को भारत में समाप्त कर दिया गया है। भारत की आजादी के बाद से वर्ष 2017 तक योजना आयोग के द्वारा कुल 12 पंच वर्षीय योजनाओं का निर्माण किया गया था। इनमें से 12वीं पंच वर्षीय योजना वर्ष 2017 में समाप्त हो गई थी। उसके बाद से भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के निर्माण को आधिकारिक तौर पर समाप्त किया जा चुका है।
- योजना आयोग के द्वारा भारत के विकास के संदर्भ में ‘ऊपर से नीचे की ओर वाला दृष्टिकोण’ (Top to Down Approach) अपनाया जाता था। इसका अर्थ यह है कि केंद्र सरकार द्वारा नीतियाँ निर्मित की जाती थी और फिर उन्हें राज्यों के सहयोग से क्रियान्वित किया जाता था। अर्थात् केंद्र सरकार द्वारा नीतियाँ निर्मित करने के दौरान राज्यों से सलाह नहीं ली जाती थी। ऐसे में, आर्थिक विकास की प्रक्रिया अधिक प्रभावी ढंग से प्रतिफलित नहीं हो पाती थी। इसके विपरीत, नीति आयोग के अंतर्गत ‘नीचे से ऊपर की ओर वाला दृष्टिकोण’ (Bottom to UP Approach) अपनाया जा रहा है। इसका अर्थ है कि नीति निर्माण के दौरान ही राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सलाह ली जाती है और उनके द्वारा दी गई सलाह के आधार पर नीति निर्माण किया जाता है। इस व्यवस्था का लाभ यह होता है कि इससे न सिर्फ केंद्र द्वारा निर्मित नीतियाँ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की परिस्थिति के अनुकूल होती हैं, बल्कि इससे आर्थिक विकास की गति भी तेज होती है। इसके परिणाम स्वरूप न सिर्फ राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के आर्थिक विकास को गति मिलती है, बल्कि इससे अंतिम रूप से समूचे राष्ट्र का समेकित विकास भी तेज होता है।
- योजना आयोग के द्वारा अपनाए जाने वाले दृष्टिकोण के तहत ‘सबके लिए एक समाधान’ (One Size Fit s for All Plan) के सिद्धांत पर कार्य किया जाता था। यह सिद्धांत निश्चित रूप से भारत जैसे विविधता पूर्ण देश के लिए सार्थक नहीं कहा जा सकता है क्योंकि प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश की नीतिगत आवश्यकताएँ भिन्न भिन्न होती हैं तथा प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश विकास की अलग अलग अवस्था में होता है। ऐसी स्थिति में, सभी राज्यों के लिए एक समान विकासात्मक नीतियों का निर्माण करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता है। इसके विपरीत, नीति आयोग के गठन के पश्चात् ‘सबके लिए एक समाधान’ वाले दृष्टिकोण का परित्याग कर दिया गया है और अब प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश की आवश्यकता के अनुसार नीतियाँ निर्मित करने की प्रवृत्ति पर बल दिया जा रहा है। इससे न सिर्फ प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अपने आप को राष्ट्रीय विकास से जुड़ा हुआ महसूस कर पाएगा, बल्कि दूसरे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से विकास की दृष्टि से स्वयं की तुलना भी कर सकेगा। ऐसे में, राष्ट्रीय विकास का एक सकारात्मक माहौल तैयार हो सकेगा और अंततः राष्ट्रीय विकास को गति मिलेगी।
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